Articles: महिलाओं पर निवेश का एक मजबूत आधार उनके लिए ज्यादा से ज्यादा नौकरी और उद्यमिता के अवसरों को तैयार करना होगा। कुछ सालों तक कई क्षेत्रों में महिलाओं के 50 फीसदी नहीं तो कम से कम 30 से 35 फीसदी हिस्सेदारी को सुनिश्चित किये जाने की योजना चलायी जानी चाहिए। तभी बड़े पैमाने पर महिलाएं स्टार्टअप और एनएसएमई जैसे क्षेत्रों में अपनी धाक जमा पाएंगी।
अगर 2047 तक भारत को विकसित देश बनना अ है, तो यह महिलाओं पर अधिक से अधिक निवेश किये बिना संभव नहीं होगा। भारत को अगले 23 सालों में विकसित राष्ट्र, महिलाओं पर ज्यादा से ज्यादा किया गया निवेश ही बना सकता है। यह कोई भावुक कल्पना या महिलावादी प्रोपेगेंडा नहीं है, इसके पीछे बकायदा ठोस अध्ययन और आधार हैं। कई साल पहले मैकिसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि अगर भारत श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर कर दे तो साल 2025 तक भारत के कुल जीडीपी में 770 बिलियन डॉलर यानी लगभग 62 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हो सकती है। हालांकि 2025 आ गया और हिंदुस्तान में आज भी श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी महज 25 से 30 फीसदी के बीच ही सीमित है। अपनी महत्वाकांक्षा के मुताबिक यदि हमें 2047 तक विकसित भारत बनना है, तो उस समय भारत का कुल जीडीपी 23 से 55 ट्रिलियन डॉलर के बीच में होना होगा । वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था करीब 4.5 ट्रिलियन डॉलर की है, इसका मतलब यह है कि अगले 23 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कम से कम 14 ट्रिलियन डॉलर से लेकर 50 ट्रिलियन डॉलर तक इजाफा हो सकता है।
अनुमानों की यह भिन्नता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अगले 23 सालों तक अपनी महिला कार्यशक्ति का किस तरह उपयोग करते हैं यानी महिलाओं को हम कार्यबल में कितनी उदारता से भागीदारी देते हैं? एक गैर लाभकारी संगठन ‘द नज इंस्टीट्यूट’ (बंगलुरु स्थित गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाला) ने लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन डेस्टिलेशन रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कहा है कि अगर भारत में महिलाओं को पूरी तरह से आर्थिक भागीदारी का मौका मिले, तो अगले 23 सालों में भारत की जीडीपी में कम से कम 14 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का इजाफा हो जायेगा। बस इसके लिए मौजूदा महिला श्रमशक्ति की भागीदारी को दोगुना या उससे थोड़ा ज्यादा करना होगा। साल 2025 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम है, ‘युवा महिलाओं का सशक्तिकरण’। यह सशक्तिकरण सबसे आसान तरीके से तभी हो सकता है, जब हम महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा श्रमशक्ति में भागीदारी दें। वैसे तो महिलाएं खुद तेजी से श्रमशक्ति में अपनी दावेदारी बिना किसी अतिरिक्त संरक्षण के हासिल कर रही हैं। लेकिन अगर भारत अगले 23 सालों में विकसित देश बनने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर सचेत स्थिति में महिलाओं पर भरपूर निवेश करे और हर क्षेत्र में उनकी भागीदारी को बढ़ा दे तो अर्थव्यवस्था में जबर्दस्त बूम आ जाएगा।
भारत सरकार इस विषय में बहुत गंभीरता से न केवल सोच रही है बल्कि इसे व्यवहारिक रूप से धरातल पर उतारने के लिए स्टार्टअप, एमएसएमई यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग के साथ-साथ कृषि आधारित उद्योगों में महिलाओं को आगे बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रही है।
भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण का सबसे आसान, ठोस और स्थायी जरिया है उन्हें शिक्षा और नवाचार के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी देना। अभी भी भारत में कई क्षेत्रों में महिलाएं बहुत अच्छा कर रही हैं, लेकिन एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में उनकी भागीदारी महज 15 से 20 फीसदी ही है। इस क्षेत्र में अगर महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 35 से 40 फीसदी तक हो जाये यानी मौजूदा स्तर से दोगुना तो अगले 23 सालों में भारत हर क्षेत्र में विकसित हो सकता है। निःसंदेह पिछले दो दशकों में महिलाओं की साक्षरता और समृद्धि में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसी योजनाओं से महिलाओं को सकारात्मक फायदा हुआ है। इन योजनाओं से महिलाएं न सिर्फ शिक्षित बल्कि आर्थिक रूप से मजबूत भी हुई हैं। लेकिन यह फायदा अभी बुनियादी स्तर तक ही सीमित है। अभी महिलाओं को उच्च शिक्षा और उच्च कौशल स्तर तक पहुंचने में विशेष प्रयासों की जरूरत है।
यूं तो पूरी दुनिया के लिए ही वह निर्णायक समय आ गया है, जब धरती के भविष्य को बचाने के लिए महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर भागीदारी देनी होगी। लेकिन भारत जैसे देशों में इसकी अतिरिक्त नरूरत महसूस की जा रही है, क्योंकि भारत भविष्य का दुनिया के लिए ‘ह्यूमन रिसोर्स हब’ है। साल 2050 में दुनिया में अकेले 35 से 40 फीसदी मैन पावर की सप्लाई भारत द्वारा की जायेगी और तब तक अगर पुरुषों के स्तर की ही हमारी महिला श्रमशक्ति नहीं हुई तो अकेले भारत को ही नहीं पूरी दुनिया को इसका नुकसान होगा। एक तरह से देखा जाए तो भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण, उनका पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चलना सिर्फ भारत के विकसित देश होने भर के लिए जरूरी नहीं है बल्कि यह धरती के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है। भविष्य का जॉब मार्केट, ग्लोबल जॉब मार्केट होगा और उसमें सबसे ज्यादा सप्लाई भारत से ही होगी। इसलिए भारतीय महिलाओं को इस ग्लोबल मार्केट के लिए तैयार होना होगा।
भारतीय महिलाएं ऐसा कर सकती हैं, इसे उन्होंने एक नहीं कई बार करके दिखाया है। भारत के पिछले 20 सालों के अनुभव से यह निष्कर्ष सामने आया है कि जब महिलाएं सरपंच या सांसद होती हैं, तो स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक न्याय पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। तब इन सभी क्षेत्रों में ज्यादा न्यायपूर्ण संसाधनों का वितरण और निवेश होता है। भारत के स्वच्छता मिशन, जल संरक्षण और महिला सुरक्षा जैसे विषयों पर महिलाओं की व्यापक भागीदारी से इन सभी क्षेत्रों में ध्यान देने लायक परिवर्तन और सुधार उभरकर सामने आया है। जब से महिलाओं के सशक्तिकरण की दर बढ़ी है, तब से उसी अनुपात में बाल विवाह, घरेलू हिंसा और लैंगिक भेदभाव में कमी आयी है। इसलिए अगर भारत को विकसित बनाना है, तो उसके पहले महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके पोषण को बेहतर बनाना होगा। इसमें बड़े निवेश की जरूरत है, क्योंकि स्वास्थ्य से कमजोर और कुपोषित महिला संसाधन देश के लिए बहुत घाटे का बिजनेस है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार भारत में अभी भी 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं, यह स्थिति भी उनको कार्यक्षमता का बड़ा हिस्सा बनने से रोकती है यानी एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
इसी तरह प्रसव के दौरान मातृ-मृत्यु दर को कम करने के लिए भी भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं में महिलाओं के लिए बेहतर पोषण कार्यक्रम को सुनिश्चित करना होगा। तभी महिलाएं भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि शानदार सामाजिक व्यवस्था के लिए भी एसेट साबित होंगी। हाल के सालों में हमने देखा है कि किस तरह पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन में ग्रामीण महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभागी है। ग्रामीण महिलाएं कृषि, वनीकरण और जल-संरक्षण में अनुमान से थी बेहतर भूमिका निभा रही है। हरित ऊर्जा, सौर ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन जैसी सतत विकास योजनाओं को लाभकारी और विकास का चेहरा बदल देने वाली योजनाएं बनाने में महिलाओं की ही बड़ी भूमिका है। इसलिए अगर भारत को अगले 23 सालों में विकसित देश बनना है तो महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उन पर किये जाने वाले निवेश को एक बड़े अभियान के तौरपर पूरा करना होगा। सवाल है यह कैसे किया जा सकता है? इसके लिए महिलाओं की शिक्षा पर यानी छोटी लडकियों से लेकर उन्हें उच्ब शिक्षा तक के लंबे सफर को योजनाबद्ध ढंग से पूरा कराना होगा।
महिलाओं पर निवेश का एक मजबूत आधार उनके लिए ज्यादा से ज्यादा नौकरी और उदद्यमिता के अवसरों को तैयार करना होगा। कुछ सालों तक कई क्षेत्रों में महिलाओं के 50 फीसदी नहीं तो कम से कम 30 से 35 फीसदी हिस्सेदारी को सुनिश्चित किये जाने की योजना बलायी जानी चाहिए। तभी बड़े पैमाने पर महिलाएं स्टार्टअप और एनएसएमई जैसे क्षेत्रों में अपनी धाक जमा पाएंगी। महिलाओं पर व्यापक निवेश का एक जरिया उनका डिजिटल सशक्तिकरण भी है। महिलाओं का डिजिटल सशक्तिकरण किये जाने से उनकी डिजिटल टेक्नोलॉजी में भागीदारी और ऑनलाइन कारोबार में हिस्सेदारी बढ़ती है। साथ ही इस सबके लिए नीतिगत सुधारों का लगातार जारी रहना भी जरूरी है। जिस तरह से संसद और पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था हुई है, कुछ वैसी ही व्यवस्था दूसरे क्षेत्रों में भी की जानी चाहिए, तभी तेजी से उनका आर्थिक विकास हो सकता है।
साभार : हिंदी मिलाप लेखिका: अपराजिता