“राम” केवल एक नाम नहीं, एक ऊर्जा हैं, एक इतिहास नहीं, एक जीवित चेतना हैं, एक राजा नहीं, मर्यादा का समग्र विज्ञान हैं…!
जब भारतीय संस्कृति की गहराइयों में उतरते हैं, तो एक नाम बार-बार आत्मा की सतह पर उभरता है “राम”…!
“राम” का अर्थ है, जो ‘रम्’ धातु से उत्पन्न हुआ है, अर्थात जो सबके हृदय में रमण करता है, रामनवमी केवल एक तिथि नहीं, एक क्वांटम जागरण का क्षण है, जब ब्रह्मांड में मर्यादा, करुणा, शौर्य और संकल्प एक साथ जन्म लेते हैं…!
आधुनिक भौतिकी बताती है कि ब्रह्मांड में दो शक्तियाँ प्रमुख हैं, “आकर्षण” और “संतुलन”, “राम” जीवन भर इन दो शक्तियों का जीवंत उदाहरण रहे, पिता की इच्छा के प्रति “समर्पण” (आकर्षण) तथा वनवास के निर्णय में “विवेक” (संतुलन), सीता के प्रति “प्रेम” (आकर्षण), समाज के प्रति “उत्तरदायित्व” (संतुलन), रामराज्य उसी होलिस्टिक ऑर्डर की प्रतिकृति है, जिसमें प्रत्येक कण अपनी भूमिका निभाता है, न्याय, करुणा और विवेक के साथ…!
दार्शनिक रूप से “राम” का जीवन एक महागाथा है, जिसमें “मैं क्या चाहता हूँ” और “मुझे क्या करना चाहिए” के बीच की खाई को धर्म से पाटा गया है…!
कैकेयी की माँग: व्यक्तिगत इच्छा का अंत,
वनवास: अहंकार का विसर्जन,
रावण वध: अधर्म के विरुद्ध आत्मबल का प्रयोग,
“राम” ने स्वधर्म और परधर्म के बीच की महीन रेखा को कभी लांघा नहीं, वे न तो पलायनवादी थे, न ही प्रतिक्रियावादी, वे संतुलित कर्मयोगी थे…!
यदि “राम” को एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक मानें, तो अयोध्या आत्मा की शुद्ध स्थिति है, जहाँ शांति और प्रेम है…!
दशरथ चेतना के दस इंद्रियों का राजा है…!
राम आत्मा है,
सीता उसका प्रेम,
लक्ष्मण विवेक,
हनुमान भक्ति,
रावण अहंकार,
जब अहंकार (रावण) सीता (प्रेम) का हरण करता है, तब आत्मा (राम) विवेक (लक्ष्मण) और भक्ति (हनुमान) के सहारे उसे पुनः प्राप्त करती है…!
“राम” का वनगमन, रावण वध और अयोध्या वापसी यह सब आत्मा की अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा है…!
रामनवमी वह क्षण है जब रामत्व पुनः धरती पर उतरता है, न केवल किसी अवतारी रूप में, बल्कि हर मानव के भीतर, हर बार जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ पर कर्तव्य को प्राथमिकता देता है, हर बार जब कोई अपने क्रोध पर नियंत्रण करता है, हर बार जब कोई अन्याय के विरुद्ध खड़ा होता है, वहाँ “राम” जन्म लेते हैं…!
जब राजनीति मूल्यहीन हो जाए, तब “रामराज्य” की कल्पना संजीवनी है, जब परिवार विखंडित हो रहे हों, तब “राम” का आदर्श संबंधों में सौम्यता लाता है, जब मनुष्य विज्ञान के शिखर पर खड़ा होकर भी भीतर खोखला महसूस करे, तब “राम” उसकी आत्मा में अर्थ और आश्रय दोनों भर सकते हैं…!
रामनवमी एक पर्व ही नहीं, एक अनवरत घटना है, यह जीवन की प्रत्येक अवस्था में प्रकट होती है, जब भी हम अपने भीतर मर्यादा, प्रेम और विवेक को स्थान देते हैं…!
“राम” को समझना है, तो ग्रंथों से नहीं हृदय से समझो, “राम” को पाना है, तो मंदिर में नहीं अपने कर्म में खोजो…!
आप सभी को “रामनवमी” की मंगलमय शुभकामनाएँ…!
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राम आपके विचारों में, भावनाओं में और व्यवहार में सदैव जागृत रहें…!
👉 सुरेश कुमार व्यास “जानम” ✍️
👉 सिखवाल समाचार ®️
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