DHARM: सनातन धर्म में एकादशी तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है, इस दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना करने का विधान है, वैदिक पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में अपरा एकादशी मनाई जाती है, इस दिन व्रत में कथा का पाठ जरूर करना चाहिए…!
अपरा एकादशी की कथा…,
अपरा एकादशी के दिन दान जरूर करना चाहिए, मान्यता के अनुसार दान करने से धन लाभ के योग बनते हैं और शुभ परिणाम मिलते हैं, अपरा एकादशी की पूजा के समय व्रत का पाठ भी जरूर करना चाहिए, ऐसा माना जाता है कि कथा का पाठ करने से पूजा सफल होती है और पापों से छुटकारा मिलता है…!
“अपरा एकादशी” जिसे “अचला एकादशी” भी कहा जाता है, एकादशी व्रत सनातन हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, यह व्रत विशेष रूप से ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, उपवासी व्रत, भजन-कीर्तन और दान-धर्म का विशेष महत्व है, पद्मपुराण के अनुसार इस व्रत से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह व्रत न केवल जीवित व्यक्तियों के लिए बल्कि प्रेतात्माओं के लिए भी मुक्ति का कारण बनता है…!
अपरा एकादशी संपूर्ण व्रत कथा:
युधिष्ठिर ने पूछा:- जनार्दन…!
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है …?
मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ, उसे बताने की कृपा कीजिये…!
भगवान् श्रीकृष्ण बोले: राजन्…!
तुमने सम्पूर्ण लोकों के हित के लिये बहुत उत्तम बात पूछी है, राजेन्द्र, इस एकादशी का नाम ‘अपरा’ है, यह बहुत पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है, ब्रह्महत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ बालक को मारने वाला, परनिन्दक तथा परस्त्रीलम्पट पुरुष भी अपरा एकादशी के सेवन से निश्चय ही पाप रहित हो जाता है, जो झूठी गवाही देता, माप-तोल में धोखा देता, बिना जाने ही नक्षत्रों की गणना करता और कूटनीति से आयुर्वेद का ज्ञाता बनकर वैद्य का काम करता है, ये सब नरक में निवास करने वाले प्राणी हैं, परन्तु अपरा एकादशी के सेवन से ये भी पापरहित हो जाते हैं, यदि व क्षत्रिय क्षात्रधर्म का परित्याग करके युद्ध से भागता है, तो वह क्षत्रियोचित धर्म से भ्रष्ट होने के कारण घोर नरक में पड़ता है, जो शिष्य विद्या प्राप्त करके स्वयं ही अपने गुरु की निन्दा करता है, वह भी महापातकों से युक्त होकर भयंकर नरक में गिरता है, किन्तु अपरा एकादशी के सेवन से ऐसे मनुष्य भी सद्गति को प्राप्त होते हैं…!
माघ में जब सूर्य मकर राशि पर स्थित हों, उस समय प्रयाग में स्नान करने वाले मनुष्यों को जो पुण्य होता है, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, गया में पिण्डदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करने वाला पुरुष जिस पुण्य का भागी होता है, बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्रान करने वाला मानव जिस फल को प्राप्त करता है, बदरिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान् केदार के दर्शन से तथा बदरी तीर्थ के सेवन से जो पुण्य फल उपलब्ध होता है, तथा सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणा सहित यज्ञ करके हाथी, घोड़ा और सुवर्ण-दान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, अपरा एकादशी के सेवन से भी मनुष्य वैसे ही फल प्राप्त करता है…!
“अपरा” को उपवास करके भगवान् वामन की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुल्लोक में प्रतिष्ठित होता है, इसको पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है…!
अपरा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महीध्वज नाम का एक राजा था, उसका एक छोटा भाई बेहद क्रूर और अधर्मी था, छोटा भाई बड़े भाई को मारना चाहता था, ऐसे में उसने भाई को मारने के लिए फैसला लिया, उसने रात के समय महीध्वज की हत्या कर शव को पीपल के नीचे गाड़ दिया, अकाल मृत्यु होने के कारण महीध्वज पीपल के पेड़ पर रहने लगा और वहीं पर महीध्वज उत्पात मचाने लगा…!
एक बार ऐसा समय आया कि जब उस पेड़ के पास से धौम्य ऋषि जा रहे थे, उस दौरान उन्होंने उस आत्मा को देखा, इसके बाद उसे ऋषि ने परलोक उपदेश दिया, इसके बाद ॠषि ने स्वयं प्रेत योनि से मुक्ति के लिए ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया, ॠषि के द्वारा व्रत करने से उस आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई, जिसके बाद उसने ॠषि का धन्यवाद किया और स्वर्ग को चला गया…!
निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी संपूर्ण व्रत कथा
इसका पाठ करने से भगवान विष्णुजी आपके सभी पाप क्षमा करते हैं…!
निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों के व्रत में सर्वश्रेष्ठ और सबसे कठिन माना गया है, पद्मपुराण में इस व्रत की महिमा के बारे में विस्तार से बताया गया है कि इस व्रत को करने से आपको सभी एकादशियों का व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है, पांडवों में भीमसेन को इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई थी, व्रत रखने वालों को निर्जला एकादशी की कथा का पाठ करने से संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है, आप भी पढ़ें पद्मपुराण में दी गई इस संपूर्ण कथा को विस्तार से…,
व्यासजी ने कहा: भीम…!
ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हों या मिथुन राशि पर, शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो, केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर और किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है, एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है, तदनन्तर द्वादशी को निर्मल प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करें, इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें, वर्ष भर में जितनी एकादशीयाँ होती है, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है, शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान् केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाए और एकादशी को निराहार रहे तो यह सब पापों से छूट आता है…!”
एकादशी व्रत करने वाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंग वाले दण्ड-पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते, अन्तकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाव वाले हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आकर इस वैष्णव पुरुष को भगवान् विष्णु के धाम में ले जाते हैं। अतः निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास करना चाहिये, यदि तुम भी सब पापों की शान्ति के लिये यत्न के साथ उपवास और श्री हरि का पूजन करो, स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान् पाप किया हो तो वह सब एकादशी के प्रभाव से भस्म हो जाता है, जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है, उसे एक-एक पहर में कोटि-कोटि स्वर्ण मुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है, मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान् श्रीकृष्ण का कथन है, निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णव पद को प्राप्त कर लेता है, जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, यह पाप भोजन करता है, इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है…!
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान देंगे, वे परमपद को प्राप्त होंगे, जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, ये ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं, कुन्तीनन्दन…!
निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिये जो विशेष दान और कर्तव्य विहित है, उसे सुनो उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान् विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिये, अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है, पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठानों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को संतुष्ट करना चाहिये, ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं, जिन्होंने शम, दम और दान में प्रवृत्त हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान् वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है, निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शय्या, सुन्दर आसन, कमण्डल तथा छाता दान करने चाहिये। जो श्रेष्ठ एवं सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है, जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता हैं तथा जो भक्तिपूर्वक इस कथा का वर्णन करता है, वे दोनों स्वर्गलोक में जाते हैं, चतुर्दशी युक्त अमावास्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है, पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिये कि ‘मैं भगवान् केशव की प्रसन्नता के लिये एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करूंगा, द्वादशी को देवदेवेश्वर भगवान् विष्णु का पूजन करना चाहिये, गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल का घड़ा संकल्प करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें…!
देवदेव हृषीकेश संसारार्णतारक ।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्।।
“संसार सागर से तारने वाले देवदेव हृषीकेश…! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये…!”
भीमसेन…!
ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिये तथा उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य भगवान् विष्णु के समीप पहुंच कर आनन्द का अनुभव करता है, तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें, जो इस प्रकार पूर्णरूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो अनामय पद को प्राप्त होता है…!
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशीका व्रत आरम्भ कर दिया, तब से यह लोक में ‘पाण्डव- द्वादशी के नाम से विख्यात हुई…!