श्रृंगी ऋषि तपस्थली चहनी कोठी हिमाचल प्रदेश …!
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला मुख्यालय से 56 किलोमीटर दूर बंजार उपखंड में 10 किलोमीटर दूर बागी गांव में श्रृंगी ऋषि का मंदिर बना हुआ है, जँहा प्रभु श्री राम की बहन सहित श्रृंगी ऋषि अन्य योगिनियों के साथ विराजित हैं …!
डॉ. लालचंद द्वारा लिखित पुस्तक: “सराज के सरताज श्रृंगी ऋषि महाराज” के अनुसार सराज घाटी के जिला कुल्लू क्षेत्र की जनता इनको कलयुग का देवता, अपना डॉक्टर अपना न्यायाधीश अपना भविष्यवक्ता अपना रक्षक तथा अपना मालिक मानती है …!
इस मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 2 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई हैं, जिसके दौरान देवदार के वृक्ष तथा सेव फल के बागान के अंदर होकर श्रृंगी ऋषि की तपस्थली चहनी कोठी गाँव में पहुँचा जाता है, पूरे गाँव के मकान अनोखी “काठगुनी” स्थापत्य कला से निर्मित है, जिसमें स्थानीय पत्थर तथा स्थानीय लकड़ी का ही प्रयोग होता है …!
इस गांव में पश्चिम हिमालय मैं सबसे उंचे दो टावर सैकड़ो वर्षों से बने हुए हैं, जिनकी ऊंचाई वर्तमान में 45 मी तथा 35 मी है, ऐसी मान्यता है कि स्थानीय जागीरदार दादिया द्वारा अपनी प्रिय पत्नी “चेनी” की याद में इनको निर्मित किया गया था …!
वामपंथी इतिहासकारो द्वारा इन मिनारो को “कुतुब ऑफ हिमाचल प्रदेश” अंकित कर दिया गया जो सरासर गलत है, जबकि यह मीनारे श्रृंगी ऋष्य की तपस्थली पर निर्मित हिंदू मीनारे हैं …!
श्रृंगा ऋषि के पुजारी आदरणीय जितेंद्र शर्मा एवं ग्राम पंचायत के सरपंच पुरनचंदजी से बात करने पर बताया कि इन टावर की 20 मीटर गहरी नींव भरी हुई है, फिर 15 मीटर चौड़ाई तथा 15 मीटर लंबाई में चार मंजिल तक सिर्फ पत्थर तथा देवदार वृक्ष की थड़ी चुनी हुई है, ऊपर चढ़ने के लिए देवदार के वृक्ष से खड़ी सीढ़ियां बनाकर लगाई हुई है, उसके पश्चात ऊपर 5 मीनार बनी हुई है …!
1905 में कांगड़ा घाटी में 7.8 रिक्टर स्केल के भयानक भूकंप मापा गया, जिसमें लगभग 30000 व्यक्ति मारे गए थे तथा अनेक मकान नष्ट हो गए थे, इसके बावजूद इस भव्य मंजिल को अधिक नुकसान नहीं हुआ था, हालांकि दो मंजिल जो सबसे ऊपर थी उसमें नुकसान होने से स्थानीय जनता ने उनको सुरक्षात्मक कारणों से हटा दिया था …!
कोठी से मात्र 20 फीट की दूरी पर पांच मंजिला मुरली मनोहर मंदिर भी बना हुआ है, जिसकी स्थापत्य कला भी देखने लायक है …!
2011 में हिमाचल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन टावरों से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त की, शोध प्रतिवेदन में पहाड़ी “टांकरी लिपि” मैं प्राप्त तीन शिलालेख 1674 ई. 1693 ई. तथा 1780 ई. को संदर्भित करके इन दोनों टावरों को 17वीं शताब्दी में निर्मित बताया गया, जबकि स्थानीय लोग इनको 1500 वर्ष पुराना निर्मित बताते हैं …!
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार कुल्लू नरेश बहादुर सिंह ने सन 1532 में रूपी और सिराज क्षेत्र के राणा और ठाकुरों को हराकर अपने अधीनस्थ किया इस प्रकार उसने चैनी के ढाडिया ठाकुर को भी अपने अधीन कर दिया इसके पश्चात इस कोठी पर कल्लू के राजा का अधिकार हो गया …!
कल्लू के राजा श्रृंगी ऋष्य के भक्त थे, उन्होंने यह कोठी श्रृंगा ऋषि को समर्पित कर दी, वर्तमान तक यह कोठी उन्हीं के स्वामित्व में है …!
1. प्रथम मुख्य कोठी की सबसे ऊपर की मंजिल में योगिनियां निवास करती है, आम यात्रियों को इसमें जाने को निषेध किया हुआ है, कोठी में धोती पहन कर ही चढ़ सकते हैं, सीढ़ियां खतरनाक है अतः सावधानी रखने की एडवाइजरी जारी की हुई है …!
2. दूसरी छोटी कोठी में देवता श्रृंगी ऋषि का भंडार है जिसमें उनके आभूषण उनके वस्त्र तथा भक्तों द्वारा भेंट की गई वस्तुएं रखी जाती है, दोनों कोठियों के बीच खाली मैदान हे जिसमें देवता श्रृंगी ऋषि के विश्राम का स्थान आरक्षित है, श्रृंगी देवता से संबंधित सभी आध्यात्मिक आयोजन यहीं पर होते हैं …!
स्थानीय भक्तों द्वारा यहां पर फाल्गुनी महोत्सव भी उत्साह पूर्वक मनाया जाता है, ऐसी लोक मान्यता है कि जब-जब भी श्रृंगा ऋषि चंद्रखनि, मलाणा, हंस पुरी सहित अन्य पर्वतों पर यात्रा पर निकलते हैं तब तब उनके साथ चोटियों पर वास करने वाली योगिनीयां “पवन शक्तियाँ” भी आती है, उन योगिनियों को इसी कोठी के एक कमरे में स्थापित कर रखा हुआ है …!
योगणिया अर्थात माँकाली के अलग-अलग स्वरूप में अर्ध-अवतार या स्थानीय समझ से पवनरूपी शक्तियाँ है …!
दस्तावेजों (Record) रिकॉर्ड में अभिलेखों का सुधार करके कुतुब ऑफ हिमाचल से “चहनी कोठी तथा श्रृंगा ऋषि का टेंपल टावर” अंकित कर दिया है, इसका श्रेय हिमाचल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं (research team) को जाता है, जो हिंदू संस्कृति के अनुरूप होकर गौरवपूर्ण है …!
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2021 के सरकारी कैलेंडर मैं “चहनी कोठी” के फोटो को भी अंकित करके इसके पौराणिक तथा सांस्कृतिक महत्व को प्रकाशित किया है …!
बंजार घाटी जिला कुल्लू में मुझे अब तक खोज अभियान से ज्ञात श्रृंगी ऋषि तथा विभांडक ऋषि से संबंधित पांच तपस्थली अथवा मंदिर बने हुए हैं की जानकारी प्राप्त हुई है, यँहा पहुंचने के लिए सितंबर, अक्टूबर, नवंबर अथवा मईं महीना सर्वाधिक उपयुक्त समय है …!
दिल्ली से जाने वाले यात्रियों को कुल्लू से पहले ओट स्थान पहुंचना है, फिर बंजार उपखंड मुख्यालय तथा वहां से बागी गांव में श्रृंगी ऋषि मंदिर आधा घंटा खड़ी चढ़ाई से पहुँचा जाता है, फिर वहां से 2 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई “चहनी कोठी” तक चलना पड़ता है …!
शिवराज शर्मा, मोटरास
ऋषि श्रृंग एक खोज अभियान के तहत (रजिस्टर्ड ट्रस्ट)
मोबाइल नंबर 96729 86186
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