Monday, June 23, 2025
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आमलकी एकादशी पर करें इस कथा का पाठ सभी पापों का होगा नाश…,

Articles: हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर विधिपूर्वक व्रत किया जाता है, इस तिथि को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए शुभ माना जाता है, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आज सोमवार 10 मार्च 2025 को आमलकी एकादशी व्रत है, इस दिन व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, मान्यता है कि इससे साधक को श्रीहरि की कृपा प्राप्त होती है…!

पंचांग के अनुसार आज सोमवार 10 मार्च 2025 को आमलकी एकादशी व्रत किया जा रहा है, इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के संग आंवले के पेड़ की पूजा-अर्चना करने का विधान है, साथ ही अन्न और धन का दान करना चाहिए, धार्मिक मान्यत है कि सच्चे मन से आमलकी एकादशी व्रत को करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है…!

इस दिन पूजा के समय आमलकी एकादशी कथा का पाठ करना चाहिए, मान्यता है कि कथा का पाठ करने से एकादशी व्रत सफल होता है और साधक के सभी पापों का नाश होता है, इसलिए आमलकी एकादशी पर व्रत कथा का पाठ करना चाहिए, आइए पढ़ते हैं आमलकी एकादशी की व्रत कथा…!

पौराणिक कथा के अनुसार वैदिक नामक एक नगर में चंद्रवंशी राजा राज्य करते थे, नगर में लोग श्रीहरि के भक्त थे और सभी विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया करते थे, एक बार सभी नगरवासी फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष के आमलकी एकादशी का व्रत कर विष्णु जी की पूजा कर रहें थे, उसी समय वहां एक महापापी शिकारी का आगमन हुआ, शिकारी वहां रुककर भगवान विष्णु की कथा सुनने लगा, इस तरह उस शिकारी ने अपनी पूरी रात जागरण करते हुए बिताइ, इसके बाद घर आकर वह सो गया, कुछ दिनों बाद ही उस बहेलिया का निधन हो गया, उसे अपने किये गए पापों की वजह से नरक का सामना करना पड़ा, लेकिन एक बार अनजाने में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इस अमलकी एकादशी की कथा सुनने से उसे शुभ फल प्राप्त हुआ, उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया, एक दिन वसुरथ जंगल में भटक गया और एक पेड़ के नीचे सो गया, उस समय उस पर कुछ डाकुओं ने हमला कर दिया, लेकिन डाकुओं के अस्त्र-शस्त्र का राजा वसुरथ पर कोई असर नहीं हुआ और राजा वसुरथ आराम से सोते रहे…!

जब नगर के राजा वसुरथ की नींद खुली, तो उसने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हुए हैं, ऐसा देख राजा समझ गए कि वह उसे मारने आए थे, इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने आपकी जान बचाई है, पिछले जन्‍म में आपने आमलकी एकादशी का व्रत किया था और कथा का पाठ सुना था, उसी व्रत का यह फल आपको मिला है…!

आमलकी एकादशी पर तुलसी से जुड़ी ये गलतियां भूल कर भी न करें अन्यथा पड़ सकती हैं भारी…,

एकादशी तिथि मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है, इसीलिए एकादशी पर तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व माना गया है, लेकिन आपको ये लाभ तभी मिल सकते हैं जब आप एकादशी के दिन तुलसी से संबंधित कुछ जरूरी नियमों का ध्यान रखें…,

 एकादशी पर तुलसी से संबंधित नियम…,

हिंदू सनातन धर्म में तुलसी को पूजनीय और पवित्र माना गया है, विष्णु जी की प्रिय होने के साथ-साथ तुलसी में धन की देवी लक्ष्मी का भी वास माना जाता है, ऐसे में अगर आप एकादशी तिथि पर तुलसी से संबंधित कुछ नियमों को अनदेखा करते हैं तो इससे मां लक्ष्मी रुष्ट हो सकती हैं…!

एकादशी तिथि पर विष्णु जी को भोग में तुलसी दल डालकर अर्पित करना चाहिए, क्योंकि तुलसी के बिना विष्णु जी का भोग अधूरा माना जाता है, इसलिए आप एकादशी से पहले ही तुलसी के पत्ते उतारकर रख लें, इसी के साथ शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक भी जरूर जलाएं…!

धार्मिक मान्यता है कि एकादशी पर तुलसी माता भगवान विष्णु के निमित्त निर्जला व्रत रखती हैं, ऐसे में इस दिन अगर आप तुलसी में जल अर्पित करते हैं, तो इससे उनका व्रत खंडित हो सकता है, इसलिए एकादशी के दिन तुसली में जल चढ़ाना वर्जित होता है, साथ ही इस दिन तुलसी के पत्ते भी न तोड़ें…!

प्रतिदिन विशेष रूप से एकादशी के दिन तुलसी के आसपास साफ-सफाई का अत्याधिक ध्यान रखें, भूल कर भी तुलसी के आस-पास जूते-चप्पल, झाड़ू या फिर कूड़ेदान आदि नहीं रखना चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति को मां लक्ष्मी की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है…!

एकादशी तिथि पर इस बात का खासतौर से ध्यान रखें कि तुलसी को गंदे या फिर जूठे हाथों से न छूएं, वरना इससे आपको अच्छे परिणाम नहीं मिलते, एकादशी पर स्नान करने के बाद ही तुलसी को स्पर्श करना चाहिए, यदि स्नान किये बिना आप ऐसा करते हैं तो इससे घर-परिवार में नकारात्मकता बढ़ सकती है…!

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं, इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों सोशल मीडिया, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं से संग्रहण के आधार पर प्रेषित की जा रही हैं, स्वजातीय बंधुओं से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें, सिखवाल समाचार का उद्धेश्य सनातन धर्म प् प्रचार-प्रसार मात्र हैं…!

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