Articles: राजस्थान के वीर पुत्र महाराणा प्रताप का जन्म यूँ तो जूलियन कैलेंडर के अनुसार 9 मई, 1540 को हुआ था, लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार राणा का जन्म तृतीया, ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष, 1597 विक्रम संवत में हुआ था।
मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को हर कोई जनता है और आज भी राजस्थान में उनकी वीर कथाएं सुनाई जाती हे, आज भी राजस्थान की वीर भूमि पर बच्चा बच्चा उनके शौर्य और साहस को सुनकर उत्साहित होता है।
ऐसे तो सभी ने महाराणा प्रताप की कई शौर्य गाथाएं सुनी होगी और कई वीर रस से पूर्ण काव्य भी सुने होंगे, लेकिन आज हम आपको परिचित करवाते है। महाराणा प्रताप के ऊपर लिखी एक ऐसी वीर कविता, जिसे शायद राजस्थान का बच्चा-बच्चा जानता होगा।
इस कविता का शीर्षक हे ‘हरे घास री रोटी ‘ और ये राणा प्रताप के उस साहस और संघर्ष को बयां करती है। जब वे अकबर से युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ने अपनी सेना और परिवार के साथ अरावली पहाड़ियों में शरण ली थी।
“हरे घास री रोटी”
अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दु:ख जाग्यो
अरे घास री रोटी ही…,
हुँ लड्यो घणो हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
हुँ पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
जद याद करुं हल्दीघाटी, नैणां म रक्त उतर आवै
सुख: दुख रो साथी चेतकडो, सुती सी हूंक जगा जावै
अरे घास री रोटी ही…,
पण आज बिलखतो देखुं हूं, जद राज कंवर न रोटी न
हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ, भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
महलां म छप्पन भोग झका, मनवार बीना करता कोनी
सोना री थालियां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
अरे घास री रोटी ही…,
ऐ हा झका धरता पगल्या, फूलां री कव्ली सेजां पर
बै आज फिरे भुख़ा तिरसा, हिन्दवाण सुरज रा टाबर
आ सोच हुई दो टूट तडक, राणा री भीम बजर छाती
आँख़्यां में आंसु भर बोल्या, में लीख़स्युं अकबर न पाती
पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं, आ राडावल ऊंचो हियो लियां
चितौड ख़ड्यो ह मगरा में, विकराल भूत सी लियां छियां
अरे घास री रोटी ही…,
म झुकूं कियां है आण मन, कुल रा केसरिया बाना री
म बूज्जू कियां हूँ शेष लपट, आजादी र परवना री
पण फेर अमर री सुण बुसकयां, राणा रो हिवडो भर आयो
म मानुं हूँ तिलीसी तन, सम्राट संदेशो कैवायो
राणा रो कागद बाँच हुयो, अकबर रो सपनो सौ सांचो
पण नैण करो बिश्वास नही, जद बांच-बांच न फिर बांच्यो
अरे घास री रोटी ही…,
कै आज हिमालो पिघल भयो, कै आज हुयो सुरज शीतल
कै आज शेष रो सिर डोल्यो, आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
बस दूत ईशारो जा भाज्या, पिथल न तुरन्त बुलावण न
किरणा रो पिथठ आ पहुंच्यो, ओ सांचो भरम मिटावण न
अरे घास री रोटी ही…,
बीं वीर बांकूड पिथल न, रजपुती गौरव भारी हो
बो क्षात्र धरम को नेमी हो, राणा रो प्रेम पुजारी हो
बैरयां र मन रो कांटो हो, बिकाणो पुत्र करारो हो
राठोङ रणा म रह्तो हो, बस सागी तेज दुधारो हो
अरे घास री रोटी ही…,
आ बात बादशाह जाण हो, घावां पर लूण लगावण न
पिथल न तुरन्त बुलायो हो, राणा री हार बंचावण न
म्है बान्ध लियो है, पिथल सुण पिंजर म जंगली शेर पकड
ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
अरे घास री रोटी ही…,
मर डूब चुंठ भर पाणी म, बस झुठा गाल बजावो हो
प्रण टूट गयो बीं राणा रो, तूं भाट बण्यो बिड्दाव हो
म आज बादशाह धरती रो, मेवाडी पाग पगां म है
अब बता मन किण रजवट र, रजपूती खून रगा म है
अरे घास री रोटी ही…,
जद पिथठ कागद ले देखी, राणा री सागी सेनाणी
नीचै से सुं धरती खसक गयी, आँख़्या म भर आयो पाणी
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सपा ही झुठी है
राणा री पाग सदा उंची, राणा री आण अटूटी है
अरे घास री रोटी ही…,
ल्यो हुकम हुव तो लिख पुछं, राणा र कागद र खातर
ले पूछ भल्या ही पिथल तू, आ बात सही बोल्यो अकबर
म्है आज सुणी ह, नाहरियो श्यालां र सागे सोवे लो
म्है आज सुणी ह सुरज डो, बादल री ओट्यां ख़ोवे लो
म्है आज सुणी ह, चातकडो धरती रो पाणी पीवे लो
म्है आज सुणी ह, हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवे लो
म्है आज सुणी ह थक्या खसम, अब रांड हुवे ली रजपूती
म्है आज सुणी ह, म्यानां म तलवार रहवैली अब सुती
तो म्हारो हिवडो कांपे है, मुछ्यां री मौड मरोड गयी
पिथल न राणा लिख़ भेजो, आ बात कठ तक गिणां सही
अरे घास री रोटी ही…,
पिथठ र आख़र पढ्तां ही, राणा री आँख़्यां लाल हुई
धिक्कार मन मै कायर हुं, नाहर री एक दकाल हुई
हुँ भूख़ मरुँ हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
हुँ भोर उजाला म भट्कुं, पण मन म माँ री याद रहे
हुँ रजपुतण रो जायो हुं, रजपुती करज चुकावुंला
ओ शीष पडै पण पाग़ नही, पीढी रो मान हुंकावूं ला
अरे घास री रोटी ही…,
पिथल क ख़िमता बादल री, जो रोकै सुर्य उगाली न
सिंहा री हातल सह लेवै, बा कूंख मिली कद स्याली न
धरती रो पाणी पीवे, ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
कुकर री जूण जीवेलो, हाथी री बात सुणी कोनी
आ हाथां म तलवार थकां, कुण रांड कवै है रजपूती
म्यानां र बदलै बैरयां री, छातां म रेवली सुती
मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ म चम-चम चमकलो
कडक र उठ्ती ताना पर, पग-पग पर ख़ांडो ख़ड्कै लो
राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
हुँ अथक लडुं लो अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूलो
जद राणा रो शंदेष गयो, पिथल री छाती दूणी ही
हिन्दवाणो सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही
-कवि कन्नहैयालाल सेठिया

यह बात साल 1576 के ठीक बाद की है, जब वीर शिरोमणि मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने लगभग 20,000 सैनिकों के साथ मुग़ल शहंशाह अकबर के 80,000 सैनिकों के साथ हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था, हालांकि उस युद्ध में अकबर की सेना ज्यादा थी, जिस वजह से युद्ध और भी कठिन हो गया था, ऐसे में इस स्थिति को देखते हुए महाराणा प्रताप ने अपनी प्रजा को बचाने के लिए उनकी सेना और पूरे परिवार के साथ आरावली के जंगलो में शरण ली, जिससे सेना के स्वस्थ होने के साथ-साथ सभी मेवाड़ियों ने अपनी महिलाओं और बच्चो की भी हिफाज़त करी।
लेकिन जंगल में जीवन यापन कर रहे सभी सेना और लोगों को बहुत कठिनाईययों का सामना करना पड़ा, खासकर उन महिलाओं और बच्चों के लिए जो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण स्थितियों में संघर्ष कर रहे थे, समय के साथ उन लोगों के पास जो राशन था, वह खत्म हो गया जिससे कठिनाईयां और बढ़ गयी।
उस समय में दिल्ली के शहंशाह अकबर के दरबारियों में एक पृथ्वी सिंह नाम के व्यक्ति भी थे, जिन्हे पीथल के नाम से भी जाना जाता था, पृथ्वी सिंह जी महाराणा प्रताप के बहुत बड़े प्रशंसक थे और अकसर अकबर के दरबार में उसकी ही उपस्थिति में राणा की भरपूर प्रशंसा करते थे, हालांकि अकबर कई बार पृथ्वी सिंह पर क्रोधित भी हुआ, पर उनकी सोच को परिवर्तित नहीं कर पाया।
आपको ये भी बता दे कि मेवाड़ के महाराणा प्रताप को पातल के नाम से भी जाना जाता था, जो महाभारत के अर्जुन का दूसरा नाम है, यह नाम पार्थ शब्द से बना है जिस नाम से श्री कृष्णा अर्जुन को बुलाते थे, उसी दौरान राशन की घटती आपूर्ति ने महाराणा प्रताप को बहुत चिंतित कर दिया था, उनकी प्रजा पर संकट आता देख राणा को चैन नहीं मिल रहा था, वहीं प्रजा भी राशन की घटती आपूर्ति को देख जंगल में उपलब्ध घास के बीजों से रोटियां बनाने और खाने लगे।
एक सुबह पाथल (महाराणा प्रताप) ने देखा कि एक जंगली बिल्ला युवराज अमर सिंह की घास के बीज से बनी रोटी छीन कर भाग गया और इसी घटना के कारन अमरसिंह जी खूब रोने लगे, जहां एक तरह सूर्यवंशी महाराणा को हज़ारो सैनिक भी ना तोड़ पाए, वहीं महाराणा अपने बच्चे के साथ हुई इस घटना से उदास और परेशान हो गए, अमरसिंह और उनके सभी प्रजा की स्थिति को देखकर, महाराणा असहाय महसूस कर रहे थे और उन्होंने कुछ ऐसा किया जो कोई क्षत्रिय अपने स्वपन में भी ना सोचे, क्षत्रिय छोड़िये ये बात स्वयं महाराणा प्रताप ने भी अपने भयावह स्वप्न में भी ना सोची होगी।
निराशा और बेबसी ने राणा को इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने अकबर को एक पत्र लिखकर कहा कि अपने मेवाड़ और उसकी प्रजा के लिए वह आत्मसमर्पण करने को तैयार है, जब अकबर को पाथल (महाराणा प्रताप) का पत्र मिला, तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, आखिर सम्पूर्ण भारत पर राज करने का उसका स्वप्न साकार होता दिखाई दे रहा था, उससे भी ज्यादा ख़ास बात तो यह थी कि उसे यह लगने लगा था कि अब वह अपने सबसे बड़े शत्रु को हराने में सफल होने वाला है।
पत्र मिलते ही अकबर ने पृथ्वी सिंह को दरबार में में बुलवाया और सभी दरबारियों के सामने उसे महाराणा का पत्र पढ़ने को कहा, पीथल (पृथ्वी सिंह) ने सभी के सामने महाराणा का पत्र पढ़ा, इस पत्र ने पीथल को भीतर तक झंजोड़ दिया था, वहीं पीथल के पत्र पढ़ने के बाद अकबर ने बुलंद आवाज़ में महाराणा और राजपूती खून को अपमानित कर कहा, “मैं आज पूर्ण राजपूताने का राजा हूं और आखिरकार मैने मेवाड़ को जीत लिया है, अब कोई आकर मुझे ये बताओ कि राजपूत राजा (महाराणा प्रताप) की रगों में किस तरह का राजपूत खून है” अकबर की इस प्रतिक्रिया ने पीथल को झकझोर कर रख दिया, क्योंकि उन्हें यह बेहद अपमानजनक और घृणित लगा, उन्हें विश्वास भी नहीं हो रहा था कि उनके महान नायक महान महाराणा प्रताप ने मुग़लो से हार मान ली है, जिनके नाम से शत्रु भी कांपते है, उन्होंने आज समर्पण कर दिया है।
उसी क्षण पीथल को यह महसूस होता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण ही हार मान ली होगी, महाराणा को प्रोत्साहित करते हुए पीथल ने वापस ख़त लिखा और उस पत्र में उन्होंने महाराणा को उनकी वीरता और सभी उपलब्धियों की याद दिलाया, पीथल के शब्दों ने महाराणा प्रताप के हृदय को खंजर की तरह छेद दिया, पत्र में लिखे शब्दों ने उनके अभिमान पर प्रगाढ़ प्रहार किया और यही पीथल चाहता था।
पीथल के उन कटु और शक्तिशाली शब्दों ने महान शेर महाराणा प्रताप को वापस जीवित कर दिया था और उन्हें दुश्मन के खिलाफ खड़ा कर दिया, पीथल की चिट्ठी ने पातल की मनःस्थिति बदल दी और उनका राजपूती खून मातृभूमि की रक्षा के लिए फिर उबल पड़ा।
प्रसिद्ध राजस्थानी और हिंदी कवि कन्हैयालाल सेठिया लिखित ये कविता ‘हरे घास री रोटी’, महाराणा प्रताप के जीवन के इसी अध्याय का वर्णन करती है, उनके शब्दों ने बखूबी ये बयां किया है की कैसे पीथल के उस मजबूत लेखन ने महाराणा प्रताप को अकबर के खिलाफ उठने के लिए मजबूर किया, पाथल और पीथल की ये कविता मेवाड़ी भाषा में अद्भुत कविता कहलाती है।