विद्या और कला में क्या अन्तर है ?
जो-जो काम वाणी द्वारा सम्यक-भलीभाँति पूरा किया जा सके वह है “विद्या” और जिसे छू कर, चख कर, देखकर, सूंघ कर, सुनकर किया जा सके उसे “कला” कहते हैं –
ये हम नहीं शुक्राचार्य कहते हैं –
16 विद्याओं और 64 कलाओं में से केवल 32 कलाओं को आप देखिये :
१. तालाब, बावड़ी, राज-भवन तथा भूमि समतल बनाना – निर्माण-कला
२. सूर्य-घड़ी और अनेक प्रकार के वाद्य-यंत्र बनाना – यंत्र कला
३. हीन, मध्यम तथा उत्तम रूप से मिलाये हुए रंग आदि से वस्त्र रंगना – रंजन कला
४. जल, वायु और अग्नि के मंद, मध्यम, उग्र संयोग और निरोध के द्वारा वाष्प से चालित यंत्र बना कर – उससे विभिन्न कार्य लेना – आभियंत्रकी कला
५. नौका, रथ, विमान जल-थल-नभचारी वाहनों का निर्माण – यान-निर्माण कला
६. पटसन आदि सूत्रों से रस्सी बनाना – रज्जु निर्माण कला
७. अनेकानेक सूतों के संयोग से वस्त्र-विन्यास कला
८.रत्न परीक्षण और रत्न-छेदन-कला
९.स्वर्ण-रजतादि धातुओं का भलीभाँति परीक्षण करना – धातु-परीक्षण-कला,
१०. कृत्रिम धातु और रत्न निर्माण-कला
११. स्वर्णादि धातुओं से आभूषण-मुकुटादि निर्मित करना व स्वर्णावरण – कला यानी सोने का पानी चढ़ाना
१२. मृत पशुओं के चर्म पृथक्करण कला
१३. चर्म को नर्म सॉफ्ट बनाने की कला
१४. पशुओं से दुग्ध दोहन से मक्खन-घृत निर्माण तक की कला
१५. कञ्चुक – वस्त्र-अंत:वस्त्र सीने की कला
१६. जल में विभिन्न प्रकार से तैरने की कला
१७. विभिन्न धातुओं के बर्तनों और वस्त्रों को साफ करना – धातु भाण्ड / वस्त्र परिष्करण-कला
१८. बाल- विभिन्न शैली से काटना और सजाना – केश-कर्तन एवं सज्जा-कला
१९. बीज और गूदे से तेल निकालना – स्नेह-निष्कासन-कला
२०. गुड़ाई-कुड़ाई-जुताई – कर्षण-कला एवं विभिन्न प्रकार के पेड़ो को विभिन्न प्रकार से लगाना और चढ़ना – वृक्षारोपण व वृक्षारोहण-कला
२१. मनोनुकूल-सेवा-कला, दूसरे के मन को जान कर उसके अनुसार व्यवहार करने की कला
२२. बाँस और तिनकों से विभिन्न वस्तुएं-पात्र बनाने की कला – वेणुतृणादि-पात्र-कृति-कला
२३. शीशे के पात्र और वस्तुएं बनाना – काच- पात्रादि-करण-विज्ञान-कला
२४. जल से किसी भी पौध-वृक्ष-फसल सिंचन-कला, और उस आवश्यकता की पूर्तिके लिये जलसंचन और जल निस्तारण कला
२५. लोहे के अस्त्र-शस्त्र बनाना – शस्त्रास्त्र-कृति-कला
२६. हाथी, घोड़े, ऊंट, बैल की पीठ पर बैठने के आसन बनाना – पल्याणादि-क्रिया-कला
२७. शिशुओं को गोद में रखने, रक्षा करने और उनको खिलाने-क्रीड़ा कराने की कला – शिशु- संरक्षण-धारण-क्रीडन-कला
२८. अपराधियो को न्यायसंगत विधि से प्रताड़ित करने की कला – अपराधिजने-सुयुक्त-ताड़न-कला
२९. विभिन्न प्रान्तों-देशों की वर्ण-माला – अल्फाबेट्स सुन्दर रीति से लिखने की कला (कैलीग्राफी) – वर्ण-सुसम्यग्-लेखन-कला
३०. पान आदि पत्तियों की रक्षा और उनके उपयोग की कला – तम्बूलक्षादि-कृति-कला
३१. किसी भी कला को झट से सुसम्पन्न कर लेना – या किसी कला को झट से सीख लेना आदान-कला
३२. किसी भी कला को रसीला बनाते हुये देर तक करना – कला सिखाने में विलम्ब करना प्रतिदान कला
इसके बाद भी गान्धर्व कला के अंतर्गत – नृत्य-कला, वाद्य-वादन-कला, वस्त्रालंकार-संधान-कला, रूप-प्रकाशन-कला, शय्यास्तरण-कला यानी बेड-बिछाने की कला, पुष्पादि-ग्रथन कला, धूतादि-मनोरजंन-कला
आयुर्वेद के अन्तर्गत फल-फूल-पत्तो का रस निकालने, उनके उपयोग-प्रयोग की कला, चुभे काँटे को निकालने की कला, फोड़े पर चीरा लगाने की कला, हींग नमकादि- रसों के संयोग से अन्न पकाने की कला, औषधीय वृक्षों के रोपण, रक्षण और फल के उपयोग की कला, औषध-गुण-युक्त पत्थरों को तोड़ कर तत्व निकालने की कला, स्वर्णादि धातुओ को गला कर भस्म तैयार करने की कला, रस से अवलेह, गुड़ बनाने की कला, औषधियों को मिलाने और उनके प्रयोग की विधि जानने की कला, मिश्रित धातुओं को अलग-अलग करने की कला, क्षार निकालने की कला, धातुओं के अपूर्व रीति से संयोग की कला,
धनुर्वेद की पाँच कलाओं के बाद अनेक आसनों को सिद्ध कर देवताओं को प्रसन्न करने की कला,
रथ-सारथ्य कला,
हाथी-घोड़ों की गति नियंत्रण-कला
मिट्टी, लकड़ी, पत्थर और धातुओं से सुंदर वस्तुयें और बर्तन बनाना भी चार अलग-अलग कलाएँ हैं
Articles : भाई श्री सोमदत्त जी के पटल से…,