Articles: पति के मॉं को टीवी सीरीयल्स व वेबसीरीज की सासों की तरह खलनायिका के रूप में देखा जाने लगता है, आखिर ऐसा क्यों…??
पति की माँ को आखिर में वृद्धाश्रम ही जाना पड़ता है, आखिर क्यों…?
हम में से कितने लोगों ने देखा या सुना है कि विवाह से पहले कभी किसी कि बहनों ने अपने पिता कि सम्पत्ति में से अपने भाइयों से अपना हक माँगा हो…?
हम में से कितने लोगों ने कभी देखा या सुना है कि कुंवारे भाईयों में कभी सम्पत्ति विवाद हो रहा हो…?
विवाह उपरांत भाइयों में सम्पत्ति का बंटवारा होने लगता है, आखिर क्यों…?
पहले चूल्हे बँटने शुरू होते हैंं, और फिर शुरू होता है सम्पत्ति का बंटवारा, आखिर क्यों…?
जिस घर के 6 सदस्यों की ज़ुबान पर एक चूल्हे का स्वाद रहता था, उसी घर में सिर्फ बाहर से दो सदस्यों के और आ जाने भर से वँहा ऐसी कौन सी मनहूसियत आ जाती है, कि चूल्हे बँटने लग जाते हैंं…?
जिस घर में पहले एक सदस्य कुछ खाने के लिए लाता था तो सब एक साथ मिल बाँटकर खाते थे, उसी घर में अब लोग खाने की चीजें छुपाकर ले जाने लगते हैंं, आखिर क्यों…?
जिस घर से दो बेटियाँ पढ़-लिख कर इज़्जत से विदा हो चुकी होती हैं, उसी घर की नयी-नवेली बहू को वह घर छोटा लगने लग जाता है, आखिर क्यों…?
ऐसे ही ना जाने कितने ऐसे क्यूँ ? हैंं जिसे सोच-सोच कर हर पुरूष का दिल बैठता रहता है कि शादी करने पर कहीं मेरा परिवार ना बिखर जाए, कहीं किसी बात पर हम भाई आपस में न लड़ जाएँ, आखिर उनके मन से यह डर कब और कैसे दूर होगा…?
वह भाई जो बचपन में किसी गैर के हाथ अपने भाई पर उठाना बर्दाश्त नहीं कर पाता, वही भाई अपने ही भाई की जान का दुश्मन कैसे व क्यूँ बन जाता है…?
जब पुराने समय में कुछ दामादों और कुछ मर्दों ने बेटियों को दहेज के लिए जलाया, उनका सौदा किया, उन्हें मारा-पीटा, उनकी हत्याएँ तक की, तो हमने एक कहावत बना डाली कि सभी मर्द एक जैसे होते हैं, आखिर क्यों…?
क्या सचमुच में सभी मर्द एक जैसे ही होते हैं…?
ऐसा कहने वाली महिलाएँ इस बात को क्यों भूल गयी कि उनके पिता व भाई भी एक पुरुष ही तो हैंं…?
आज उतनी बेटियाँ दहेज के लिए नहीं जलायी जा रही हैंं, जितने बेटे घरेलू कलह के कारण मानसिक रूप से विक्षिप्त हो रहे हैं, आत्महत्या तक कर रहे हैं, आखिर क्यों…?
आज की तारीख में एक बेटे की माँ को उसी समय से चिंता शुरू हो जाती है, जब उसके बेटे की शादी की बात चलने लगती है, आज तक कुँवारें बेटे-बेटियों ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम नहीं भेजा होगा, आखिर क्यों…?
सोचिए और हमें सोचना ही पड़ेगा कि आखिर ऐसा क्यों…?
यदि बात स्त्री के सम्मान की है, तो यह वही पुरूष वर्ग है, जिसने स्त्री को देवी तुल्य कहकर मान और सम्मान दिया, उसकी आन के लिए अपनी जान तक दी है…!
हर स्त्री को समझना होगा कि मर्द को भी दर्द होता है, और उनका यह दर्द उनके आंसूओं के जरिए नहीं बल्कि ह्रदयाघात के रूप में ही बाहर आता है…!
स्त्री को बस एक बात समझनी है कि माँ के आँचल में जिस दुलार से यह शख्स पला है, उसे पत्नी के पल्लू की छाँव में भी उतना ही प्यार और परवाह मिले, चूल्हे ना बँटने पाएँ, और उसको उसके अपने माँ-बाप से बुढा़पे मे अलग ना होना पड़े…!
बस पुरूषों की सिर्फ यही छोटी सी और दबी ख्वाहिश को पूरी करने से घर-घर नहीं बल्कि स्वर्ग जैसा अनुभव कराएगा …!
आपका क्या विचार है…?