Friday, June 20, 2025
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महाकुंभ: आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिकता की यात्रा – 3

!! 🚩श्रुतम्-1543🚩 !!

युगाब्द ५१२६ वि.सं २०८१ माघ मास कृष्ण पक्ष १४ चतुर्दशी मंगलवार 28 जनवरी 2025 आज का दिन आप सभी के लिए सुखमय मंगलमय हो …! 🕉

भारत की महान् सांस्कृतिक परंपराएं एवं विरासत – 3

महाकुंभ: आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिकता की यात्रा – 3

कुंभ मेले की जड़ें वैदिक साहित्य और पौराणिक समुद्र मंथन से जुड़ी हैं, जहाँ अमरता का अमृत (अमृत) एक दिव्य वरदान के रूप में उभरा, ऐसा माना जाता है कि इस दिव्य अमृत की बूँदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन) पर गिरीं, जिससे वे हमेशा के लिए पवित्र हो गए, यह पौराणिक घटना न केवल कुंभ मेले की नींव रखती है, बल्कि इसकी प्रतीकात्मक प्रासंगिकता, अमरता, पवित्रता और आत्मा की उत्कृष्टता की गहरी समझ भी प्रदान करती है …!

कुंभ मेले को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

पूर्ण कुंभ (पूर्ण कुंभ): प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार
अर्ध कुंभ (आधा कुंभ) प्रत्येक 6 वर्ष में एक बार
कुंभ प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार
महाकुंभ (महान कुंभ) प्रत्येक 144 वर्ष में प्रयागराज में होता है …!

इनमें से महाकुंभ अद्वितीय भव्यता और आध्यात्मिक महत्त्व रखता है, जो संतों, तपस्वियों और भक्तों के एक अभूतपूर्व सैलाब को आकर्षित करता है, जो गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के संगम में स्नान के शुद्धीकरण व अनुष्ठान में भाग लेने के लिए आते हैं …!
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