!! 🚩श्रुतम्-1567🚩 !!
युगाब्द ५१२६ वि.सं २०८१ फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी शुक्रवार 21 फरवरी 2025 आज का दिन आप सभी के लिए सुखमय मंगलमय हो…!🕉
भारत की महान् सांस्कृतिक परंपराएं एवं विरासत – 27
कुम्भ में ऋषियों की भूमिका और परंपरा की निरंतरता:
प्राचीन ऋषियों व मनीषियों ने कुंभ मेले के लिए केंद्रीय आध्यात्मिक प्रथाओं को संरक्षित करने और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ऋषियों ने पवित्र अनुष्ठान और स्नान प्रथाओं की स्थापना की, जो आज भी अनवरत जारी हैं, इन अनुष्ठानों को तपस्या और शुद्धि के कार्य के रूप में देखा जाता है, माना जाता है कि ये भक्त को न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी शुद्ध करते हैं…!
समय के साथ, कुंभ मेला एक भव्य उत्सव के रूप में विकसित हुआ, जिसने भारत के सभी भागों से लोगों को सामूहिक शुद्धि के कार्य में भाग लेने के लिए आकर्षित किया, परिणामस्वरूप, आज यह राष्ट्रीय एकात्मकता और सामाजिक समरसता का सहज प्रकटीकरण हो गया है…!
स्नान के अतिरिक्त, ऋषियों ने आध्यात्मिक प्रवचनों और अभ्यासों के माध्यम से ज्ञान प्रदान किया, जो आत्मनिरीक्षण, ध्यान और ईश्वर से जुड़ने को प्रोत्साहित करते थे, ये अभ्यास अभी भी कुंभ मेले का एक अभिन्न अंग हैं, जहाँ आध्यात्मिक परंपराओं के नेता संत, गुरु और तपस्वी – शिक्षाएँ देना जारी रखते हैं, जिससे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा दोनों का समुचित वातावरण बनता है…!
👏🪷🚩🌹🙏🌹🚩🪷👏