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याद करो मै तूम्हें घर में तंग करता था,
पर रास्ते से लेकर स्कूल तक,
मै तुम पर नजर रखता था,
तुम्हारी छोटी सी मुसीबत पर,
दुनियाँ से लड़ता था…,
पंक्चर सायकिल पर तूम्हें बिठाकर,
घर तक घसीटता था,
जब भी तुम्हारे खिलौने तोडा हूँ या पेन,
तुम रोती थीं मै पिटता था,
मै कभी स्नेही भाई तो दिखा नही,
पर भीतर ही भीतर तुम पर जान छिड़कता था,
राखी के धागे को,
माँ के दूध से कम नही समझता था…,
मै पुरुष हूँ पिता हूँकठोर हूँ,
घर में तुम्हारे साथ कम रहता हूँ,
पर जब लौटने को घर होता हूँ,
तो तुम्हारी और मम्मी की लिस्ट नही भूलता,
चाहे पर्स जवाब दे जाये,
या सामान का वजन खुद से ज्यादा हो जाये,
याद है तुम्हें काँटा लगता था,
मम्मी तुम्हारी चीखते निकालती थी,
आँखे हम दोनों की डर से बन्द हो जाती थी,
चाहे तुम्हारी पढाई हो या सगाई,
मेरा सब तुम्हारा था,
मैने न अकाउंट देखा न उधारी,
तुम्हारी मुस्कराहट के लिए,
खुद को बेचते रहा,
घर से तू जाती नहीं,
मेरी जान जाती है…,
मै पुरुष पति भी हूँ,
शोषक, अत्याचारी, अधीर,
अविश्वाशी जैसे नामों से अलंकृत हूँ,
इन्ही अलंकारों से रोज कोसा जाता हूँ,
हाँ तेरा घर छुड़ाया पराया बनाया,
पर कुछ तो अच्छी बात होगी न,
मेरी मुहब्बत, मेरा समर्पण,
मेरा त्याग, मेरी मेहनत,
क्या सब क्षद्म है…?
सब बेमानी है क्या…?
तुम्हारे दर्द को जीता हूँ,
तुम्हारे हर सुख के लिए,
रात दिन एक करता हूँ,
पर तुम वो पहली सी रोमांन्टिक फ़िल्म,
हर पल जीना चाहती हो,
पर ये पथरीली जिंदगी मुझे घसीटती है,
संघर्ष की दुनिया में,
बना देती है जड़…,
यार मै अभिनेता नहीं हूँ,
मै कविता नही करता,
मै पुरुष हूँ,
जज्बातों की गठरी छुपाये,
हर पल लड़ते रहता हूँ,
तन्हाई में मेरी आँखें भी बरसती हैं,
ज़ख्मों की नदियाँ मुझमें भी रिसती हैं…!