Wednesday, August 13, 2025
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मृत्युभोज पर आजकल बहुत कुछ लिखा जा रहा है, मेरा मत थोड़ा अलग है…!

मित्रों पोस्ट का प्रारंभ मानवता को शर्मसार करने वाले एक खबर से करुँ…,

अमेरिका में स्थापित दो धनाढ्य भाइयों के पिता की जब मौत हो जाती है, तो एक भाई दूसरे भाई से कहता है कि इस बार तुम चले जाओ, माँ मरेगी तो मै चला जाऊँगा…!

मृत्युभोज कोई कुरीति नहीं है, मृत्यु भोज समाज और रिश्तों को सँगठित करने के एक अवसर की पवित्र परम्परा है, हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे, आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा, हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा, जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है…!

इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों, हमारे बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई थी…,

ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे संबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल-जोल का दूसरा माध्यम क्या है…?

दु:ख की घड़ी में भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय, ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे, हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे…!

मानता हूँ कि जिन लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया होगा, उन्हें इस पर अंकुश लगाना चाहिए, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ, कौन कहता है कि 56 भोग परोसो…?

कौन कहता है कि 4000 – 5000 लोगों को भोजन कराओ और अपना दम्भ दिखाओ, परम्परा तो केवल 16 ब्राह्मणों की थी…!

मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ, लेकिन अपनी उन परंपराओं का भी कट्टर समर्थक हूँ, जिनसे आपसी प्रेम, मेलजोल और भाईचारा बढ़ता हो…!

कुछ कुतर्कों की वजह से हमारे बाप दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं, जो दूर दूर के रिश्ते नाते को एक जगह लाकर फिर से समय समय पर रिश्तों में जान डाल देते हैं, सुधारना हो तो उन लोगों को सुधारो, जो आयोजन रिश्तों की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं, किसी भी परंपरा की कुछ विधियां यदि समय सम्मत नहीं है, तो उसका सुधार किया जाये, ना कि उस परंपरा को ही बंद कर दिया जाये…!

मित्रों हमारे बाप दादाओं बुजुर्गों ने जो परम्पराएं विरासत में सौंपी हैं, जिससे रिश्ते सहेजने की बजाय उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाँटिये…!

वरना तरस जाओगे मेल जोल को, किसी भी परम्परा को बिल्कुल ही बंद मत करो, समय समय पर शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो, ये संजीवनी है रिश्ते नातों को जिन्दा करने की…!

🙏हमारी परम्पराएँ, हमारी संस्कृतियाँ हमारी अनमोल धरोहरें है, इन्हें सहज कर संभाल कर रखों…!🙏

।। साभार प्राप्त एवम प्रेषित ।।

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