Articles: जैसा की सर्वविदित है की सामान्य बंदर के सामने अगर कोई भी केले और बहुत सारे पैसे रखेंगे तो वो केवल केले ही उठाएगा, कारण वो पैसे का मोल समझता ही नही और वो नहीं जानता की इन्ही पैसों से बहुत अधिक केले भी ख़रीदे जा सकते है…?
ठीक इसी प्रकार वर्तमान की प्राय: सभी सामाजिक वस्तुस्थिति में भी, किसी भी समुदाय की जनता को अगर “सामाजिक विकास में सहयोग” अथवा “सामाजिक पद मय निजी लाभ” में से किसी एक का विकल्प चयन हेतु कहें, तो वे बिना विलम्ब किये “सामाजिक पद मय निजी लाभ” का ही चयन करेंगे, क्योंकि उनका निज स्वार्थपरायण और स्वहित स्वभाव उन्हें सत्य को समझने भी नहीं देगा, की समाज अगर संगठित एवं सुरक्षित नहीं रहेगा, तो वे निजी हितों के गठरी किस “सामाजिक पद” पर ढोयेंगे…?
आजकल लगभग सभी सामाजिक संगठनो के समुचित विकास एवं उन्नति को क्षीण करने में सहायक तीन विरोधाभासी कारण वर्तमान में काफी प्रचलन में है…!
प्रथम:
हर समुदाय में कुछ बन्धुगण सोचते है की हमारे समाज का कौनसा संगठन क्या कर रहा है हमे उससे क्या…?
वे अपनी सम्पन्नता दिखाने एवँ अपने आप का भामाशाह के रूप में महिमामंडन करवाने हेतु, प्रचलित या प्रभावशाली संगठन जिसने भले ही पूर्व में कितने ही घोटाले किये हुए हो, उनसे बिना हिसाब-किताब पूछे लाखों-करोड़ों रूपए सहयोग कर देंगे, ताकि उनके नाम का शिलालेख पूर्व के भामाशाहों के शिलालेखों की जगह या उनके ऊपर ही क्यों नहीं लग जाये…?
उन्हें उससे कोई सरोकार नहीं…!
द्वितीय:
प्रत्येक समुदाय में सामाजिक आकाओं के कृपापात्र, “फर्जी पदाधिकारी” उन्हीं लोगों की मजबूरीवश पैरवी करेंगे, जो वर्षों से समाज को केवल गुमराह करने के कलागुरु (निपुण) रहें है, और वे समाज सेवा के नाम पर लोगों को छलने के विशेषज्ञ प्रतीत होते है, ऐसे में कोई इनकी कारगुजारियों का वास्तविक विरोध करते है, तो उसे डराने-धमकाने, उस पर सामाजिक बदनामी रूपी कीचड़ उछालने के लिए इनके तथाकथित रक्षकगणों (गुर्गे) की फ़ौज तुरंत मुस्तैदी के साथ अपना कार्य करने के लिए तैयार कि जाती हैं, ऐसे लोग बिना किसी स्वार्थ के सेवा करने वालों का विरोध करते हुए सत्य को दबाने का प्रयास करते है…!
तृतीय:
प्रत्येक समाज में अनैतिक कार्यों का विरोध तो दिखता है, वो भी सिर्फ असक्षम अथवा गरीब परिवार के लिए, किन्तु धनाढ्य परिवारों द्वारा किये जा रहे अनैतिक, असंवैधानिक कार्यों का आज तक कभी किसी ने विरोध देखा …?
देखेंगे भी कैसे कारण “समरथ का नहीं दोष गोसाई “
कितना हास्यापद प्रतीत होता है, जबकि समाज का गरीब से गरीब व्यक्ति यथाशक्ति सामाजिक कार्यों में सहयोग देता है, परंतु समर्थवान व्यक्ति अपने निजी सामाजिक कार्यक्रमों में सामाजिक संगठनो में सहयोग करने की सोचता भी नहीं है, बल्कि सामाजिक सहयोग से मौज-मस्ती करते हैं, तथा धनबल-बाहुबल से बने समाजसेवी उसका आनंद लेते है…?
उपरोक्त बाते किसी को नापसंद अथवा बेतुकी भी लग सकती है, परन्तु मनन करने योग्य अवश्य है…!
एक और तथ्य:
हर एक समाज महान था, बुजुर्गों द्वारा सौंपी गयी विरासतों का खान था,
फ़िर भी धनाढ्य परिवारों का बोलबाला क्यों…?
क्योंकि…,
“प्रत्येक क्षेत्र में समाज का हर एक व्यक्ति अपने निजी विरोध के कारण अपनों से दूर खड़ा था, और पद की झूठी लालसा एवं फोटोग्राफी के चक्कर में अनैतिक कार्य करने वालों का साथ देने पर अड़ा था…!”
परिस्थिति आज भी वही है कुछ लोग सच्चाई के लिए सत्य के साथ खड़े हैं और भ्रमित प्रत्येक समाज के कुछ बुद्धिजीवी समाज बंधू उन्हें मिटाने पर अड़े है…!
अनेकों फर्जी पदाधिकारियों को देखा हैं समाजहित की बात करने वालों पर कीचड़ उछालते हुए, मगर किसी भी समाज में ऐसे किसी बुद्धिजीवी को नही देखा, जो अनैतिक तथा असंवेधानिक कार्य करने वालों का खुल कर विरोध करें, या चंदे के धंधे का कोई हिसाब पूछ सकें…!
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आज का अधिकतर समाज अपने पतन का कारण स्वयं ही बनता जा रहा है…!
अभी भी समय हैं थोड़ा सोचो, सजग एवं सतर्क हो जाओं और अपने-अपने परिवार और समाज को जोड़ो…!!
जय हिंद जय भारत
जय हो ऋष्य श्रृंग की
माता शांता की जय