ARTICLES: महर्षि गौतम ने पूछा: संसार में कोई भी प्राणी बिना भोजन के नहीं रहते !
अतः बताओ तुम लोग क्या आहार करते हो…?
प्रेतों ने कहा:–
“अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।
यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः।।
अर्थात्:–
द्विजश्रेष्ठ…!
जहाँ भोजन के समय आपस में कलह होने लगता है, वहाँ उस अन्न के रस को हम ही खाते हैं…!
जहाँ मनुष्य बिना लिपी-पुती (पोछा आदि से साफ हुई) धरती पर खाते हैं:-
जहाँ ब्राह्मण शौचाचार से भ्रष्ट होते हैं वहाँ हमको भोजन मिलता है…!
जो पैर धोये बिना खाता है, और जो दक्षिण की ओर मुँह करके भोजन करता है अथवा जो सिर पर वस्त्र लपेट कर भोजन करता है, उसके उस अन्न को सदा हम प्रेत ही खाते हैं…!
जहाँ रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्ध के अन्न पर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न पितरों का नहीं हम प्रेतों का ही भोजन होता है…!
जिस घर में सदा जूठन पडा रहे, निरन्तर कलह होता रहे और बलिविश्वैदैव न किया जाता हो वहाँ हम प्रेत लोग भोजन करते हैं…!
महर्षि गौतम ने पूछा ❓
कैसे घरों में तुम्हारा प्रवेश होता है, यह बात मुझे सत्य-सत्य बताओ…❓
प्रेत बोले:–
ब्राह्मण…!
जिस घर में बलिवैश्वदेव होने से धुएं की बत्ती उडती दिखाई देती है, उसमें हम प्रवेश नहीं कर पाते…!
जिस घर में सवेरे चौका लग जाता है तथा वेद मंत्रों की ध्वनि होती रहती है, वहाँ की किसी वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं होता…!
गौतम ने पूछा…?
किस कर्म के परिणाम में मनुष्य प्रेत भाव को प्राप्त होता है…?
प्रेत बोले:–
जो धरोहर हडप लेते हैं, जुठे मुँह यात्रा करते हैं, गाय और ब्राह्मण की हत्या करने वाले हैं, वे प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं…!
चुगली करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, न्याय के पक्ष में नहीं रहने वाले, वे मरने पर प्रेत होते हैं…!
सूर्य की ओर मुँह करके थूक-खकार, और मल-मूत्र त्याग करते हैं, वे प्रेत शरीर प्राप्त करके दीर्घकाल तक उसी में स्थित रहते हैं…!
गौ-ब्राह्मण तथा रोगी को जब कुछ दिया जाता हो, उस समय जो न देने की सलाह देते हैं, वे भी प्रेत ही होते हैं…!
यदि शूद्र का अन्न पेट में रहते हुए ब्राह्मण की मृत्यु हो जाये तो वह अत्यंत भयंकर प्रेत होता है…!
विप्रवर…!
जो अमावस्या की तिथि में हल में बैलों को जोतता है वह मनुष्य प्रेत बनता है…!
जो विश्वासघाती, ब्रह्महत्यारा, स्त्रीवध करने वाला, गोघाती, गुरूघाती और पितृहत्या करने वाला है, वह मनुष्य भी प्रेत होता है…!
DHARAM: मरने पर जिसके 16 एकोदिष्ट श्राद्ध नहीं किये गये हैं, उसको भी प्रेतयोनि प्राप्त होती है…!
राक्षसों का भोजन
राक्षस बोले: “महर्षियों हम भूख से पीड़ित हैं, सनातन धर्म से भ्रष्ट हो गये हैं”
“न च नः कामकारोऽयं यद्वयं पापकारिणः।
युषमाकं चाप्रसादेन दुष्कृतेन च कर्मणा।।
यत् पापं वरूधतेऽस्माकं ततः स्मो ब्रह्मराक्षसाः।
अर्थात्: हम पापाचार करते हैं, यह हमारा स्वेच्छाचार नहीं है, आप जैसे महात्माओं की हम पर कभी कृपा ही नहीं हुई और हम सदा दुष्कर्म ही करते चले आये, इससे हमारे पाप की निरन्तर वृद्धि होती रहती है और हम ब्रह्मराक्षस हो गये हैं। (इसीलिए जिस घर जिन मनुष्यों को संत समागम या संत सेवा का अवसर नहीं मिलता और अगर मिलता भी है तो करते नहीं वे राक्षसी प्रवृत्ति के हो जाते हैं)
योषितां चैव पापेन योनिदोषकृतेन च।।
ही वैश्यशूद्राणां क्षत्रियाणां तथैव च।
ये ब्राह्मणान् प्रद्विषन्ति ते भवन्तीह राक्षसाः।।
अथार्त: स्त्रियाँ अपने योनिदोषजनित पाप (व्याभिचार) से राक्षसी हो जाती हैं, इसी प्रकार क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में से जो लोग ब्राह्मण से द्वेष करते हैं, वे राक्षस हो जाते हैं ।
महर्षि बोले:-
“क्षुतं कीटावपन्नंच यच्चोच्छिष्टाचितं भवेत्।
सकेशमवधूतं रूदितोपहतंच यत्।।
स्वभिः संसृष्टमन्नंच भागोऽसौ रक्षसामिह।
तस्माज्ज्ञात्वा सदा विद्वानेतान यत्नाद् विवर्जयेत।।
राक्षसान्नामसौ भुङ्क्तेयो भुङक्ते ह्यनन्मीदृशम्।
अथार्त: जिस अन्न पर थूक पड गयी हो, जिसमें कीडे पडे हों, जो झूठा हो, जो तिरस्कार पूर्वक प्राप्त हुआ हो, जो अश्रुपात से दूषित हो गया हो (जिसे आँसू बहाते हुए पकाया जाये) तथा जिसे कुत्ते ने छू दिया हो वह सारा अन्न इस जगत में राक्षसों का भाग है । अतः विद्वान पुरुष सदा समझ-बूझकर इन सब प्रकार के अन्नों का प्रयत्नपूर्वक परित्याग करे, जो ऐसे अन्न को खाता है, वह मानों राक्षसों का अन्न खाता है, उसकी प्रवृत्ति राक्षसों जैसी हो जाती है।