Articles: संपूर्ण आर्यावर्त जो कैस्पियन सागर से पूर्वी द्वीप समूह –इंडोनेशिया, जावा, बाली आदि तथा उत्तर में महान हिमालय तथा दक्षिण में हिंद महासागर के बीच के विशाल भूखंड पर निवास करने वाले प्राणियों को अपने अद्भुत तप और ज्ञान से प्रकाशित करने वाले विभांडक नंदन- श्रृंगी ऋषि की ख्याति जगत के सर्जन हार भगवान “ब्रह्मदेव” के अंश परपोत्र के रूप में सर्वत्र फैली हुई है…!
ऐसे ब्रह्म ऋषि से संबंधित पश्चिमी हिमालय क्षेत्र की लोक आस्था में प्रसिद्ध कुछ रोचक लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य:-
- श्रृंगी ऋषि कलयुग के देवता है, (आदर से श्रृंगी ऋषि भगवान कहते हैं)
हिमाचल प्रदेश में इनको अ-साध्य बीमारियों के मुक्तिदाता, डॉक्टर, दुष्ट को सजा देने वाले तथा निष्पक्ष न्याय प्रदाता-न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है…!
- राज न्याय प्रदाता
आम नागरिकों के अलावा कुल्लू तथा मंडी के महाराजा तथा अनेक राजनेता अपने शंका का समाधान तथा शीघ्र और निष्पक्ष न्याय प्राप्ति हेतु श्रृंगी ऋषि तथा माता शांता की मूर्तियों के समक्ष उपस्थित होकर अपनी पूछ अर्थात न्याय की मांग रखते हैं, श्रृंगी ऋषि के पुजारी उपवास रखकर साधना में लीन होकर देव संकेत प्राप्त करके न्याय की घोषणा करते हैं जिसको सभी भक्त श्रद्धा से मानते हैं…!
- अज्ञानी द्वारा देवता की परीक्षा…,
वर्ष 2016 में एक रशियन पर्यटक महिला श्रृंगी ऋषि के समक्ष उपस्थित होकर न्याय की मांग रखी, विचार किया कि भारत की जनता में देवताओं में अंधभक्ति चरम पर है ऐसा सोचकर श्रृंगी ऋषि की परीक्षा लेनी चाहिए, पुजारी आदरणीय जितेंद्र शर्मा ने अवगत कराया की 13 दिन पश्चात वह महिला रोती हुई बागी स्थित shringi Rishi मंदिर में उपस्थित हुई और अवगत कराया कि गुरुजी मेरी सभी शंकाओं का समाधान स्वप्न में श्रृंगी ऋषि द्वारा कर दिया गया है…!
देवता अद्भुत है…,
राज पुंछ और विभांडक ऋषि:
आपके पिता श्री ने आपको आशीर्वाद दिया कि राजा का न्याय विभाग हमेशा तुम्हारे पास रहेगा, क्योंकि बिना न्याय के लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना संभव नहीं है, त्रेता युग में जब छल कपट करके राजा अंग नरेश रोमपाद द्वारा ऋषि श्रृंगी को अपने दरबार में बुला लिया और राजगद्दी पर बैठा दिया, जब उनको वहां पर बैठा हुआ विभांडक ऋषि द्वारा देखा गया, तो उन्होंने तत्काल उनको राज गद्दी छोड़ने हेतु निर्देशित किया, तब श्रृंगी द्वारा अपने पिता श्री को अवगत कराया की राजा के निर्देशों की पालना में ही वे इस स्थान पर बैठे हैं, तब आपके पिता श्री विभांडक ऋषि ने कहा कि राजा को ज्ञान नहीं होने से सन्यासी को राजगद्दी पर बैठा दिया जो अनुचित है, अब मैं पुत्र तुम्हें आशीर्वाद देता हूं की राज न्याय तुम्हारे जैसे तपस्वी और ज्ञानी के पास रहेगा…!
त्रेता युग से आज तक इसकी पालना इस क्षेत्र में की जा रही है और उनके द्वारा शीघ्र दिए जाने वाले न्याय का मुहावरा बन गया कि जिसको अक्सर कोर्ट के कई जस्टिस अनौपचारिक रूप से कहते हैं कि शीघ्र न्याय चाहिए तो श्रृंगी ऋषि के यहां जाना चाहिए…!
- एक ऋषि के प्रति आज भी अद्भुत सम्मान…!
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में श्रृंगी ऋषि को शक्ति के पुजारी के रूप में भी माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि उनके द्वारा मां बागेश्वरी की 10000 वर्ष तक कठोर तपस्या इसी क्षेत्र में की गई थी, इसलिए इस गांव का नाम बागी पड़ गया, जहां पर श्रृंगी ऋषि तथा माता शांता जी का अत्यंत सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां पर दोनों को एक साथ पूजा जाता है…!
- श्रृंगीऋषि का मोहरा (देवता का धातु से बना हुआ मुखौटा जिसकी पूजा की जाती है)
शादियां तथा हवन-पूजन आदि मांगलिक कार्यों में श्रद्धालु श्रृंगी ऋषि के मोहरे को अपने घरों में सम्मान सहित ले जाते हैं
1674 में कुल्लू नरेश मानसिंह जी द्वारा श्रृंगी ऋषि भगवान को मोहरा प्रस्तुत किया था l
दूसरा मोहरा राजा टेडी सिंह ने भी चढ़ाया था l
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कश्मीर का संबंध कश्यप ऋषि से रहा है…,
जिसकी पुष्टि पिछले कुछ दिनों पूर्व भारत के गृहमंत्री आदरणीय अमित शाह जी द्वारा भी अपने उद्बोधन में कश्मीर कश्यप ऋषिका कहकर अवगत कराया, पुराणों में इसका वर्णन है कि कश्यप ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे और उनके पुत्र विभांडक ऋषि थे, महर्षि कश्यप द्वारा अपने पुत्र को निर्देशित किया कि उत्तरी आर्यावर्त के कल्याण हेतु वे संलग्न रहेंगे और दक्षिणी आर्यावर्त को आप जाकर संभाले, निर्देशों की पालना में विभांडक ऋषि द्वारा वर्तमान कर्नाटक के चिकमगलूर मैं श्रृंगेरी मठ स्थान पर मल्हनीकरेंश्वर शिवलिंग की स्थापना कर जीवन पर्यंत भगवान महादेव की तपस्या में लीन रहे, तथा जन कल्याण किया तथा उनके सुपुत्र द्वारा भी इसी स्थान से 8 किलोमीटर दूर कीगा गांव में श्रृंगेश्वर महादेव की स्थापना कर बरसात तथा संतति विज्ञान के अद्वितीय साधक के रूप में विख्यात हुए…!
आदि शंकराचार्य द्वारा भारत के चारों कोनों में मठ की स्थापना सर्वप्रथम श्रृंगेरी मठ की स्थापना करके की गई, यह स्थल इन्हीं पिता पुत्र की तपस्थली रही है तथा इन्हीं के नाम से “Sringeri” नाम पड़ा, इस संपूर्ण क्षेत्र को श्रृंगगिरी कहते हैं, उनके द्वारा श्री यंत्र स्थापित करके शारदा माँ की मूर्ति स्थापित की गई…!
पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर(POK)
में पौराणिक शारदा पीठ थी, जिसके अवशेष Line of Control से थोड़ी ही दूरी पर अभी भी विद्यमान है तथा भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में सीमा पर नया शारदा पीठ मंदिर बनाया गया, जिसमें अष्टधातु की शारदा मां की मूर्ति श्रृंगेरी मठ से ही तैयार करवाई गई तथा वहीं के पुजारीयो को बुलाकर स्थापित करवाई गई…!
इससे कश्मीर के कश्यप ऋषि के होने तथा कर्नाटक-श्रृंगेरी मठ के विभांडक ऋषि तथा श्रृंगी ऋषि के (परस्पर संबंध) पिता-पुत्र और पोत्र संबंध की पुष्टि होती है…!
शिवराज शर्मा, ऋषि श्रृंग एक खोज अभियान के तहत (रजिस्टर्ड ट्रस्ट)
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